Friday, January 3, 2014

It Is Better To Start Early The Habit Of Saving - Management Funda - N Raghuraman - 3rd January 2014

बचत की आदत जितनी जल्द शुरू हो उतना अच्छा 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


कर्नाटक में मेंगलोर के एक गांव में हनुमंता कोटी और उसके आठ सदस्यों वाला परिवार रहता था। परिवार में उनकी पत्नी, पांच बेटियां और दो बेटे हैं। गांव में काम नहीं था इसलिए यह परिवार 1990 के दशक के शुरुआती सालों में मेंगलोर आ गया। यहां ये लोग मजदूरी करने लगे। गांव से शहर की ओर आने के दौरान सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा परिवार के छोटे बच्चे मंजूनाथ पर। वह सात साल का था। दूसरी कक्षा में पढ़ता था और गंभीरता से पढ़ाई करना चाहता था। मंजूनाथ मेंगलोर पहुंचा तो वहां कई शहरी बच्चों को स्कूल जाते देखा। खुद को रोक नहीं पाया। वह भी उनके साथ हो लिया। कक्षा में तब तक बैठता रहा जब तक उसे पकड़ा नहीं गया। स्कूल में जो खाना मिलता उसे वह खुद तो खाता ही घर के दूसरे सदस्यों के लिए भी ले आता। वह सरकारी स्कूल था। एक दिन उसे स्कूल की टीचर मैरी ने पकड़ लिया। उन्होंने उससे जब पूछताछ की तो वे झुंझलाने के बजाय प्रभावित हो गईं। मंजूनाथ को अपनी उम्र के हिसाब से काफी जानकारी थी। पढ़ाई में उसकी रुचि देख टीचर मैरी ने उसमें खास दिलचस्पी दिखाई। 

Source: It Is Better To Start Early The Habit Of Saving - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd January 2014
टीचर मैरी ने मंजूनाथ के गांव के स्कूल को पत्र लिखा। वहां से जरूरी कागज मंगवाए और उसे अपने स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया। हालांकि मंजूनाथ के पिता इसके लिए तैयार नहीं थे। वे चाहते थे कि उनका बेटा काम करे। क्योंकि परिवार गरीबी से जूझ रहा था। मंजूनाथ ने पिता की बात भी नहीं काटी। स्कूल के साथ-साथ वह काम भी करने लगा। गाडिय़ां धोकर कुछ पैसे घर लाने लगा। लेकिन इससे उतनी कमाई नहीं होती थी। इसलिए वह घरों में काम करने लगा। घरेलू नौकर के तौर पर उसे अब 700 रुपए तक मिल जाया करते थे। मंजूनाथ कमाई के साथ-साथ बचत भी कर रहा था। वह मासिक आय का 10 फीसदी बचा रहा था ताकि उसे आठवीं कक्षा में एडमिशन लेने में आसानी हो। सातवीं कक्षा में उसने 600 में से 530 अंक हासिल किए। और अपनी बचत के पैसों की बदौलत आठवीं में एडमिशन भी हासिल किया। मंजूनाथ ने 53 फीसदी अंकों के साथ अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की। लेकिन तभी अचानक उसके पिता और भाइयों ने तय किया कि वे गांव वापस लौट जाएंगे। वहां उन लोगों को सुरक्षा गार्ड की नौकरी मिल रही थी। वे लौट गए लेकिन मंजूनाथ नहीं लौटा। उसने तय किया कि वह मेंगलोर में ही रहेगा। वहीं रहकर आगे की पढ़ाई करेगा। जिस चॉल में वह किराए से रहता था उसके मालिक ने मंजूनाथ की मदद की।

महीने की बचत से जुटाए गए पैसों से इंटर कॉलेज की फीस भरी और चॉल मालिक के सहयोग से एडमिशन हो गया। उसे एक नौकरी भी मिल गई। शाम को छह बजे से रात 12 बजे तक काम करना होता था। महीने में 1800 रुपए पगार। बचत की आदत यहां भी बनी हुई थी। दो साल में उसने करीब 6,000 रुपए बचा लिए। इस वक्त वह डिग्री कोर्स करना चाहता था। उसकी फीस 10,000 रुपए थी। मंजूनाथ किसी भी कीमत पर पढ़ाई छोडऩा नहीं चाहता था। लिहाजा 6,000 रुपए लेकर वह कॉलेज के प्रिंसिपल से मिला। उन्होंने उसकी बात को समझा और उसे बैचलर इन सोशल वर्क (बीएसडब्लू) में एडमिशन दे दिया। फीस की बाकी रकम प्रिंसिपल ने माफ कर दी। यहां अब एक नई दिक्कत पेश आई। अंग्रेजी भाषा। मंजूनाथ ने अब तक मातृभाषा में पढ़ाई की थी। अंग्रेजी से उसका ज्यादा वास्ता था नहीं। लेकिन उसके उत्साह, टीचर्स और साथी स्टूडेंट्स की मदद से उसने इस मुश्किल से भी पार पा लिया। नई भाषा सीख ली। तीन साल तक उसने दिन में 20-20 घंटे काम किया। पढ़ाई और पार्ट टाइम जॉब में पूरा समय खपाया। कुछ और नहीं किया। लेकिन बचत की आदत अब भी जारी थी। इन तीन सालों में मंजूनाथ ने 20,000 रुपए बचा लिए। अब वह पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहता था। सोशल वर्क में ही मास्टर डिग्री लेने की इच्छा थी। लेकिन फीस 49,000 रुपए। ऐसे में कॉलेज का स्टाफ, उसके ट्रस्टी, साथी स्टूडेंट्स मंजूनाथ की मदद को आगे आए। वे अब तक उसके बारे में काफी कुछ जान चुके थे। सबकी मदद से 40,000 रुपए जुट गए। इतने में उसे एडमिशन मिल गया।

अब भाग्य भी मंजूनाथ का साथ दे रहा था। जैसे ही उसने मास्टर डिग्री पूरी की, उसे नौकरी मिल गई। लिंक डी एडिक्शन एंड काउंसलिंग सेंटर में काउंसलर की जॉब थी। अब मंजूनाथ का एमफिल करना चाहते हैं। उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए बचत करना शुरू कर दिया है। सुबह 9.30 बजे से शाम 5.30 तक वे काम करते हैं। जहां रहते हैं, उसी जगह पर रात 9.00 से सुबह 7.00 बजे तक पहरेदारी का काम करते हैं। ताकि कमाई ज्यादा हो। स्कॉलरशिप और स्पॉन्सर के विकल्प की भी तलाश कर रहे हैं। यानी अगले लक्ष्य भी वे हासिल कर ही लेंगे। 

फंडा यह है कि...

बचत एक आदत है। यह बचपन में जितनी जल्दी शुरू हो जाए उतना अच्छा। दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति और जाने-माने निवेशक वारेन बफेट भी अच्छे बचतकर्ता हैं। लेकिन उन्हें एक अफसोस है कि बचत की आदत उनमें 11 साल की उम्र में पड़ी। यानी देर से।


Source: It Is Better To Start Early The Habit Of Saving - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd January 2014

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