डोर से बंधी कठपुतलियों का तमाशा
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
वर्तमान की धुंध से घबराकर उम्र दराज लोगों का मन विगत की यादों में शांति खोजता है। अब हरियाली केवल मन के वृन्दावन में ही बची है क्योंकि बंगाल और केरल को छोड़कर सारे राज्यों की सरकारें कृषि की जमीन बड़ी कंपनियों को उद्योग व टेक्नोलॉजी विकसित करने के नाम पर कम दामों में बेच रही हैं। टेक्नोलॉजी मनुष्य की भूख का इलाज नहीं है। कोई तो बताए कि कितने प्रतिशत जमीन पर खेती की जा रही है। कारों के निर्माण के लिए कौडिय़ों के दाम जमीनें बेची गई, चार राज्यों के चुनाव की कीमत अब जनता सौ रुपए किलो दाल खरीदकर चुका रही है जो दो महीने पहले 80 रुपए किलो थी।
Source: Puppets Show with Strings Attached - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 16th January - 2014
अतीत स्मृति के नाम पर बहुचर्चित लोगों की बातें करके भी मन उकता जाता है। आज कामिनी कौशल 88 वर्ष की हैं। उन्होंने सन 44 से 64 तक अनेक फिल्मों में नायिका की भूमिका की। एक जमाने में वे दिलीप कुमार की प्रिय नायिका रहीं तथा राजकपूर, देव आनंद और अशोक कुमार के साथ भी फिल्में की परन्तु शरतचंद्र की 'बिराजबहू'उनकी 'मदर इंडिया' है। उनका जन्म नाम उमा है परन्तु चेतन आनंद की 'नीचा नगर' में चेतन आनंद की पत्नी उमा ने उनका स्क्रीन नाम कामिनी कौशल रखा।
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उनकी बड़ी बहन की मृत्यु हो गई और उनके दो शिशुओं को पालने की जवाबदारी कामिनी पर आ गई और कालांतर में उन्होंने अपने जीजा से ही विवाह भी कर लिया। 1964 में मनोजकुमार की 'शहीद' में उन्होंने भगतसिंह की मां की भूमिका कमाल की अभिनीत की और फिर वे कई फिल्मों में मां की भूमिकाएं करती रहीं। अभिनय के लंबे कॅरिअर में उन्होंने अनेक फिल्में कीं और एक दौर में दिलीप से उनके इश्क के चर्चे थे। सन 1946 में रमेश सहगल की शहीद में वे दिलीप के साथ नायिका थीं।
दरअसल, कामिनी कौशल ने कम उम्र से ही गुडिय़ा बनाना शुरू किया था और उन्होंने न केवल अपने बच्चों के लिए गुडिय़ा बनाई वरन इसी प्रक्रिया में अपने कठपुतली के तमाशों से उन्होंने दूरदर्शन के माध्यम से सारे देश के बच्चों का मनोरंजन किया। वे कठपुतली पात्रों के लिए परदे के पीछे संवाद भी बोलती थीं। टेलीविजन के लिए बच्चों के अनेक कार्यक्रम उन्होंने रचे और उनकी निर्माण संस्था का नाम भी गुडिय़ा घर प्रोडक्शन रहा है। ज्ञातव्य है कि मनोज कुमार की 'उपकार' के प्रीमियर के समय उन्होंने अपनी बनाई एक हजार गुडिय़ाओं की प्रदर्शनी भी आयोजित की थी। कठपुतलियों से उन्हें प्यार रहा है परन्तु अमिया चक्रवर्ती की फिल्म 'कठपुतली' की नायिका वैजयंतीमाला थी और शंकर जयकिशन का माधुर्य था शैलेन्द्र का गीत 'बोल री कठपुतली, डोरी कौन संग बांधी, तू नाचे किसके लिए ...पिया ना होते ,मैं न होती, जीवनराग सुनाता कौन, प्यार थिरकता किसकी धुन पर, दिल का साज बजाता कौन, बोल री कठपुतली तू नाचे किसके लिए' हॉलीवुड ने 'कठपुतली' के माध्यम से कत्ल करने वाली रहस्य, रोमांच की भूतिया फिल्में रचीं है और भारत में इस तरह के कुछ प्रयास हुए हैं।
राजकपूर और नरगिस ने फिल्म 'चोरी चोरी' के एक दृश्य में कठपुतली का तमाशा देखते हुए स्वयं की कल्पना में कठपुतलियों की तरह अपने को नाचते देखा। दोनों कलाकारों ने कमाल नृत्य किया है। गीत था, 'जहां मैं जाती हूं, वहीं चली आते हो, ये तो बताओ कि तुम मेरे कौन हो' कामिनी कौशल ने बचपन में गुडिय़ा से खेला और उम्रदराज होने पर भी अपनी गुडिय़ा और कठपुतलियों के संग्रह को देखती रही हैं। दरअसल ये बचपन और मासूमियत की प्रतीक होते हुए, हमारी उम्र के हर दौर में हमारी असहायता को रेखांकित करती है। हर मनुष्य किसी न किसी डोर से बंधा है और जन्म के पूर्व भी मां की कोख में वह अंब्लिकल कॉर्ड से बंधा रहता है। कभी कभी ये कॉर्ड अर्थात डोर ही उसके गले में फांसी के फंदे की तरह उसे जकड़ लेती है। हमने किन निर्मम व्यवस्थाओं और नेताओं की डोरी से बंधना पसंद किया और कैसे वे गले का फंदा बन गई। निदा फाजली 'ये जीवन शोर भरा सन्नाटा, जंजीरों की लंबाई तक है तेरा सैर सपाटा'।
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उनकी बड़ी बहन की मृत्यु हो गई और उनके दो शिशुओं को पालने की जवाबदारी कामिनी पर आ गई और कालांतर में उन्होंने अपने जीजा से ही विवाह भी कर लिया। 1964 में मनोजकुमार की 'शहीद' में उन्होंने भगतसिंह की मां की भूमिका कमाल की अभिनीत की और फिर वे कई फिल्मों में मां की भूमिकाएं करती रहीं। अभिनय के लंबे कॅरिअर में उन्होंने अनेक फिल्में कीं और एक दौर में दिलीप से उनके इश्क के चर्चे थे। सन 1946 में रमेश सहगल की शहीद में वे दिलीप के साथ नायिका थीं।
दरअसल, कामिनी कौशल ने कम उम्र से ही गुडिय़ा बनाना शुरू किया था और उन्होंने न केवल अपने बच्चों के लिए गुडिय़ा बनाई वरन इसी प्रक्रिया में अपने कठपुतली के तमाशों से उन्होंने दूरदर्शन के माध्यम से सारे देश के बच्चों का मनोरंजन किया। वे कठपुतली पात्रों के लिए परदे के पीछे संवाद भी बोलती थीं। टेलीविजन के लिए बच्चों के अनेक कार्यक्रम उन्होंने रचे और उनकी निर्माण संस्था का नाम भी गुडिय़ा घर प्रोडक्शन रहा है। ज्ञातव्य है कि मनोज कुमार की 'उपकार' के प्रीमियर के समय उन्होंने अपनी बनाई एक हजार गुडिय़ाओं की प्रदर्शनी भी आयोजित की थी। कठपुतलियों से उन्हें प्यार रहा है परन्तु अमिया चक्रवर्ती की फिल्म 'कठपुतली' की नायिका वैजयंतीमाला थी और शंकर जयकिशन का माधुर्य था शैलेन्द्र का गीत 'बोल री कठपुतली, डोरी कौन संग बांधी, तू नाचे किसके लिए ...पिया ना होते ,मैं न होती, जीवनराग सुनाता कौन, प्यार थिरकता किसकी धुन पर, दिल का साज बजाता कौन, बोल री कठपुतली तू नाचे किसके लिए' हॉलीवुड ने 'कठपुतली' के माध्यम से कत्ल करने वाली रहस्य, रोमांच की भूतिया फिल्में रचीं है और भारत में इस तरह के कुछ प्रयास हुए हैं।
राजकपूर और नरगिस ने फिल्म 'चोरी चोरी' के एक दृश्य में कठपुतली का तमाशा देखते हुए स्वयं की कल्पना में कठपुतलियों की तरह अपने को नाचते देखा। दोनों कलाकारों ने कमाल नृत्य किया है। गीत था, 'जहां मैं जाती हूं, वहीं चली आते हो, ये तो बताओ कि तुम मेरे कौन हो' कामिनी कौशल ने बचपन में गुडिय़ा से खेला और उम्रदराज होने पर भी अपनी गुडिय़ा और कठपुतलियों के संग्रह को देखती रही हैं। दरअसल ये बचपन और मासूमियत की प्रतीक होते हुए, हमारी उम्र के हर दौर में हमारी असहायता को रेखांकित करती है। हर मनुष्य किसी न किसी डोर से बंधा है और जन्म के पूर्व भी मां की कोख में वह अंब्लिकल कॉर्ड से बंधा रहता है। कभी कभी ये कॉर्ड अर्थात डोर ही उसके गले में फांसी के फंदे की तरह उसे जकड़ लेती है। हमने किन निर्मम व्यवस्थाओं और नेताओं की डोरी से बंधना पसंद किया और कैसे वे गले का फंदा बन गई। निदा फाजली 'ये जीवन शोर भरा सन्नाटा, जंजीरों की लंबाई तक है तेरा सैर सपाटा'।
Source: Puppets Show with Strings Attached - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 16th January - 2014
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