जिंदगी में बहुत सी चीजें अतिरिक्त नहीं होतीं
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
फिल्मी कहानी:
गोवा के मापुसा गांव में एक दंपती के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा कनाडा में सैटल हो गया है। वहां उसने एक विदेशी महिला से शादी कर ली है। शादी की खबर देने के बाद से उसने कभी अपने माता-पिता को फोन नहीं किया। छोटा बेटा गोवा में ही पढ़ता है, लेकिन वह हर वक्त लड़कियों के पीछे फिरता रहता है। इस तरह वह घर की इज्जत को मिट्टी में मिला रहा है। इस दंपती के पास पैसे की कोई कमी नहीं है। फिर भी उनकी जिंदगी नर्क बनकर रह गई है। एक दिन बड़ा बेटा कनाडा से गोवा आता है। वह अपनी पत्नी को सभी देखने लायक जगहों पर ले जाता है। घुमाता-फिराता है पर घर नहीं जाता। माता-पिता की खोज-खबर तक नहीं लेता, लेकिन इसी बीच एक जगह उसका पिता से आमना-सामना हो जाता है। वे उसे घर चलने को कहते हैं, वह मना कर देता है। इसके बाद दोनों के बीच जमकर बहस होती है। और बेटा पिता को बुरा-भला कहकर चला जाता है। यह सब जब मां को पता चलता है तो उसे हार्ट अटैक आ जाता है।
Source: There Are Lot Many Things Which Are Not Extra In Life - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 29th January 2014
गरमागरम बहस होती है। बेटे का इरादा साफ झलक रहा है कि वह किसी तरह लड़की से पीछा छुड़ाना चाह रहा है। माता-पिता को उसी झंझावात में छोड़कर वह घर से निकल जाता है। यहां पति-पत्नी भारी मन से मानते हैं कि बच्चों से ज्यादा अपेक्षा करने पर बुजुर्ग मां-बाप की यही हालत होती है। ये कहानी है, गोवा थियेटर के बादशाह कहे जाने वाले प्रिंस जैकब के एक नाटक की। इस नाटक का शीर्षक है, 'आमची कौन चिंता' यानी हमारी कौन चिंता करता है। पूरी कहानी आज के दौर का वास्तविक चित्रण करती है। जहां सच में युवा पीढ़ी अपने बूढ़े हो रहे माता-पिता का ख्याल छोड़ चुकी है। और ये बुजुर्ग बेचारे उम्र के आखिरी पड़ाव पर खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। प्रिंस जैकब की खासियत है कि वे अपनी कहानियों में सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव की बारीकियों को खूबसूरती से उभारते हैं।
असल कहानी:
मुंबई के उल्हासनगर में रहने वाले गंगाधर दुबे टैक्सी ड्राइवर हैं। इसी काम से वे अपने परिवार के चार सदस्यों का पेट पाल रहे थे। अपने 17 साल के बेटे अभिषेक को पढ़ा रहे थे। वह बेटा जो उनके लिए भविष्य की उम्मीद था। 17 जनवरी को उन्हें एक संदेश मिला। इसमें बताया गया था कि उनका बेटे की हालत काफी गंभीर है। उसका ट्रेन से एक्सीडेंट हो गया है। इस खबर ने गंगाधर के पैरों के नीचे से जैसे जमीन छीन ली थी। उन्हें पता लगा कि उनके बेटे का जहां एक्सीडेंट हुआ, वहीं के पास के दो अस्पतालों में शुरुआती इलाज हुआ। इसके बाद उसे केईएम (किंग एडवर्ड मेमोरियल) अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वे दौड़े-भागे वहां पहुंचे। अभिषेक का छह दिन इलाज चला। सातवें दिन डॉक्टरों से उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया। पिता ने धीरज नहीं खोया।
उन्होंने अपने बेटे के सभी अंग जरूरतमंद मरीजों को दान करने का फैसला सुना दिया। वे बेटे को आसानी से जाने नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उसको टुकड़ों-टुकड़ों में जिंदा कर दिया। बच्चे की एक किडनी को 30 साल की मां के शरीर में आसरा मिला। करीब सात साल पहले इस महिला की किडनियां फेल हो गई थीं। दूसरी किडनी को 28 साल के युवक के शरीर में सांसें मिलीं। वह लंबे समय से डायलिसिस पर था। लिवर पंजाब की एक 55 साल की महिला के शरीर में जा बसा था। अभिषेक के शरीर के हर जरूरी अंग कहीं न कहीं ठिकाना पा चुका था। लिस्ट लंबी है।
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