मानो या नहीं लेकिन कभी भगवान आपको मसीहा बना देते है
मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन
वह सिर्फ 26 साल के हैं। मेडिकल प्रोफेशन में उन्हें आए अभी आठ महीने ही हुए हैं। डॉ. अंचित भटनागर की हम बात कर रहे हैं। मुंबई के जेजे अस्पताल के सर्जरी विभाग से जुड़े हुए हैं। उस रोज वह हिल पार्क सोसायटी में स्थित अपने घर पर आए ही थे। तभी उन्हें पता चला कि उनकी माताजी दिल्ली से आ रही हैं। नजदीकी अलेक्जेंडर ग्राहम बेल रोड पर भारी भीड़ थी। दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन को अंतिम विदाई देने ये लोग देश और दुनिया भर से आए हुए थे। सैयदना मोहम्मद का निवास स्थान सैफी महल भी यहीं है। डॉ. अंचित को पता चला तो वे तुरंत मां को सुरक्षित घर लाने के लिए निकल पड़े। वे मां को निकाल ही पाए थे कि अचानक भीड़ में भगदड़ मच गई। अंचित ने देखा कि लोग एक-दूसरे को धक्का दे रहे हैं। चीख चिल्ला रहे थे। जो गिर गए उन्हें कुचलते हुए बचने के लिए यहां-वहां दौड़ रहे हैं। पुलिस भी भीड़ को संभाल नहीं पाई। उसको इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं थी। नीचे गिरे हुए लोग जैसे जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे थे। महिलाओं- बच्चों की हालत सबसे ज्यादा खराब थी। कई बेहोश हो चुके थे। घायल थे। आसपास कोई मेडिकल सुविधा भी नहीं थी।
Source: Believe It or Not God Can Make You Messiah - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 20th January 2014
यहां तक कि 24 घंटे खुली रहने वाली दवाइयों की दुकानें भी बंद थीं। आसपास की सोसायटियों की बिल्डिंगो के गेट बंद थे। लोग घरों में भीतर घुसे हुए थे। शायद कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहता था। तभी पास की हिल पार्क सोसायटी और एमटीएनएल कॉम्पलेक्स के गार्डो ने गेट खोल दिए। ताकि किसी तरह घायलों की मदद की जा सके। ये दोनों इमारतें सैफी महल के सामने हैं। घायलों-पीड़ितों को एक-एक कर भीतर लाया जाने लगा। मौके पर डॉ. अंचित अकेले थे। उन्होंने भी वक्त नहीं गंवाया। उन्होंने सबसे पहले वहां लाए गए पांच घायलों को अटेंड किया।
सभी घायलों के शरीर में पानी की कमी हो रही थी। अंचित तुरंत अपने घर के भीतर दौड़े। ग्लूकोज और पानी लाकर उन घायलों को दिया। तभी कुछ और पीड़ित वहां ले आए गए। इनमें से कुछ बेहोश थे। अंचित ने उन्हें होश में लाने के लिए उनके मुंह में मुंह से हवा दी। तभी पास की एमटीएनएल बिल्डिंग का चौकीदार उनके पास आ गया। उसने बताया कि उसके यहां भी कई घायल लाए गए हैं। मदद चाहिए। वे तुरंत उसके साथ हो लिए। लेकिन उन्हें तीन मिनट की दूरी पर मौजूद बिल्डिंग तक पहुंचने में आधा घंटा लग गया। जैसे-तैसे वहां पहुंच पाए। अंचित ने वहां भी अपनी तरफ से घायलों को बचाने के लिए हर तरह के प्रयास शुरू कर दिए। इसके बावजूद कुछ लोगों ने उनके सामने ही दम तोड़ दिया। हालात ऐसे थे कि एंबुलेंस मौके पर पहुंच नहीं पा रही थी। दवाईयां भी नहीं थी। सिर्फ इन इमारतों में रहने वाले लोग ही जो मदद दे पा रहे थे, वही थी। अकेले डॉक्टर अंचित। जो बन पड़ा था, कर रहे थे। दो घंटे तक यही हालात थे। तब-तक इन इमारतों में 60 लोगों को लाया जा चुका था। इनमें तो जो दम तोड़ चुके थे, उन्हें छोड़कर ज्यादातर घायल ऐसे थे जिनके हाथ या पैर टूट गए थे। तकलीफ में थे।
डॉ. अंचित उन्हें दिलासा दे रहे थे। होश में रखने की कोशिश करते हुए उन्हें कुछ देर दर्द बर्दाश्त करने की हिम्मत दे रहे थे। तभी करीब शाम चार बजे पहली एंबुलेंस मौके पर पहुंची। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। हालांकि तब तक 18 लोग दम तोड़ चुके थे। लेकिन घायलों में ऐसे भी कई थे, जो सिर्फ और सिर्फ अंचित की वजह से ही सांसें ले रहे थे। उनके लिए यह शख्स भगवान के भेजे मसीहा से कम नहीं था।
फंडा यह है कि..
कभी-कभी जिंदगी में भगवान आपको मौका देते हैं। उनकी ओर से भेजे मसीहा की भूमिका अदा करने का। उनके चमत्कारों का हिस्सा होने का। ऐसे मौकों को हमें कभी छोड़ना नहीं चाहिए।
Source: Believe It or Not God Can Make You Messiah - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 20th January 2014
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