Thursday, January 23, 2014

Importance of Umbilical Cord In The Creation of Film Studios - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 23rd January 2014

फिल्म भवन रचना में नाल का महत्व 


परदे के पीछे  - जयप्रकाश चौकसे


जैसे कि पुराने लोग भवन निर्माण के समय जन्म लिए बच्चे की नाल (अम्बिलिकल कार्ड) का एक हिस्सा नींव में इस विश्वास के साथ डालते हैं कि यह भवन आने वाली पीढिय़ों के लिए शुभ होगा और परिवार इसमें सुरक्षित रहेगा। वैसे ही फिल्म की रचना प्रक्रिया में कहीं न कहीं बनाने वालों के विश्वास की नाल भी उसकी नींव में होती है। शांताराम, मेहबूब खान, विमल रॉय, गुरुदत्त और राजकपूर के सिनेमाई भवन की नींव में एक भारतीय सांस्कृतिक नाल का अंश हुआ करता था, इसीलिए आधी सदी बाद भी वे भवन कायम हैं और पर्यटन के केंद्र हैं। 

Source: Importance of Umbilical Cord In The Creation of Film Studios - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 23rd January 2014 



वर्तमान काल खंड में कुछ ऐसे भी हैं जिनके सिनेमाई भवन की नींव में पाश्चात्य फिल्मकारों की तस्वीरें गाड़ी गई हैं जैसे विशाल भारद्वाज के सिनेमा में टेरीन्टोनिया नाल गड़ी है परन्तु अधिकांश फिल्मकारों के पास नींव को पुख्ता करने के लिए कुछ भी नहीं है। इस भवन एवं नाल के रूपक के विषय में यह जानना जरूरी है कि नाल (अम्बिलिकल कार्ड) को वैज्ञानिक तरीके से सहेज कर रखना आवश्यक है क्योंकि उसी नाल के अंश से भविष्य में शिशु को होने वाली सारी बीमारियों के उपचार नाल द्वारा बनाई अमृत समान औषधि से किया जा सकता है परन्तु इस नाल बैंक के लिए इतने धन की आवश्यकता होती है कि यह सुविधा केवल श्रेष्ठि वर्ग को ही उपलब्ध है और आम आदमियों के शिशुओं की नाल स्वयं उनके नाटकीय जीवन की तरह गटर या गंदे नाले में फेंक दी जाती है। 

बहरहाल सलमान खान के सिनेमा में भी उनके परिवार के सोच की सांस्कृतिक नाल का अंश होता है। इसलिए उनके सिनेमा में मौज मस्ती, राग रंग और विविध मनोरंजन होता है और सामाजिक प्रतिबद्धता कहीं दुबकी सी पड़ी रहती है परन्तु 'जय हो' में सारी मौज मस्ती के साथ आम आदमी की भलाई का अंश खून जमकर उभरता है और यही उनकी दबंगई के इंद्रधनुष में एक नया रंग उकेरता है और इसे कुछ अलग प्रभाव देता है। गोयाकि मनुष्य सलमान खान सितारे सलमान खान का आवरण हटाकर सामने आता है और यही सलमान सार को उनके दर्शक बहुत पहले से समझते आ रहे हैं और वे स्वयं भी अभी मौज मस्ती मंत्र को 'जय हो' की स्वर लहरी में गाना चाहते हैं। बॉक्स ऑफिस के परे असलम सलमान का उभरना शुभ ही है। दरअसल सारे मनुष्यों को भी पूरी तरह से उजागर होना चाहिए और नेताओं को भी अपने असली इरादे उजागर करना चाहिए। वे कब तक झूठे घोषणा पत्रों की पटकथाओं पर अभिनय करते रहेंगे? जन्मना अंधविश्वास, पूर्वग्रह और नफरतों को छुपाते छुपाते भी लोग अब बहुत थक गए हैं और आवरणों के भीतर से गंदगी नजर आती है।
 
बहरहाल 'जय हो' में जेनेलिया डीसूजा ने तीन दृश्यों की अतिथि भूमिका की है। जेनेलिया डीसूजा ने दक्षिण भारत में कई फिल्में कीं और आमिर खान की 'जाने तू न जाने 'की नायिका रहीं हैं। वे रितेश देशमुख से विवाह कर चुकी हैं। इस फिल्म में पात्र की मृत्यु के क्षण में उसकी खूनी आंखें हृदय को मथ देती हैं। काश उसकी मृत्यु के बदले के दृश्य में सलमान का उन आंखों की स्मृति का एक शॉट होता। इसी तरह से इस फिल्म में नैराश्य में डूबे एक आदतन शराबी की भूमिका में उसी कलाकार को लिया गया है जिसने कुंदन शाह और सईद मिर्जा के 'नुक्कड़' सीरियल में 'खोपड़ी' नामक पात्र की भूमिका की थी। 

उसने अनेक गुजराती नाटकों में अभिनय किया है। इस फिल्म के क्लाईमैक्स में भी खलनायक को पहला थप्पड़ वही मारता है। तीसरी चरित्र भूमिका रिक्शा चालक की महेश मांजरेकर ने की है। जो अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाना चाहता है। एक और दो दृश्यों वाली भूमिका में सुनील शेट्टी आपको उनकी 'बॉर्डर' वाली भूमिका की याद दिलाती है। 

दरअसल कोई भी फिल्म मात्र नायक -नायिका की भूमिकाओं से ही सफल नहीं होती वर्न छोटी चरित्र भूमिकाएं भी फिल्म की कथा को आगे बढ़ाने का काम करती हैं और कुछ तथ्यों को रेखांकित भी करती हैं। ये भूमिकाएं बिहारी के दोहों की तरह गहरी मार करती हैं। विमल राय की देवदास में मोतीलाल अभिनीत चुन्नी बाबू कभी भुलाये नहीं जा सकते, 'शोले' का सांभा भी याद रहता है, गुलजार की 'पहचान' में संजीवकुमार ने भी कमाल ही किया था। 'साहब बीबी और गुलाम' के घड़ी बाबू की भूमिका अविस्मरणीय है राजकपूर की 'श्री 420' में तो कोई दर्जन भर छोटी भूमिकाएं आप भुला नहीं सकते और सैकड़ों फिल्में करने वाली ललिता पवार हमेशा याद रहेंगी। 'जय हो' में सलमान खान की केन्द्रीय विचार और अपने शरीर के साथ, छाये हुए हैं परन्तु जेनेलिया डीसूजा, कक्कर, महेश मांजरेकर भी याद रहेंगे। 






































Source: Importance of Umbilical Cord In The Creation of Film Studios - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 23rd January 2014

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