करिश्मा-करीना की निर्माण संस्था
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
करिश्मा कपूर और करीना कपूर ने भागीदारी में निर्माण संस्था खड़ी की है। इसके तहत केवल मुनाफा कमाने वाली व्यावसायिक फिल्में बनाई जाएंगी। उनके सिनेमाई मैनिफेस्टो में सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए कोई स्थान नहीं होगा, गोयाकि उन्होंने अपने दादा राजकपूर के सिनेमा से कोई संबंध नहीं रखा है और सृजन की यह नाल (अम्बिलकल कोर्ड) भी काट दी है। उनके प्रथम कजिन रनबीर कपूर ने पहले ही अनुराग बसु की भागीदारी में 'जग्गा जासूस' का निर्माण प्रारंभ कर दिया है। फिल्म के नाम से ही जाहिर होता है कि ये भी सामाजिक सरोकार के परे केवल मनोरंजन प्रधान फिल्म होगी, जिसके 120 मिनिट में 75 मिनिट का संगीत होगा। इन दोनों की विगत फिल्म 'बर्फी' चार्ली चैपलिन और मूक सिनेमा को आदरांजलि के तौर पर बनाई गई थी। अत: उसका संबंध राजकपूर के सिनेमा से स्वत: ही जुड़ गया था।
Source: Karishma - Kareena Production House - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar - 17th January 2014
गौरतलब यह है कि रनबीर कपूर, करिश्मा और करीना तीनों ने आर.के. फिल्म्स व स्टूडियो से दूरी बना ली है और ये तीनों अपने पिता तथा दादा की पुरानी संस्था को पुन: निर्माण क्षेत्र में सक्रिय नहीं करना चाहते। यह ठीक है कि नई पीढ़ी पुरानी परंपरा से प्रेरित होकर अपने मौलिक योगदान से उस परंपरा को मजबूत करती है, परंतु इन तीनों युवाओं का सोचना शायद यह है कि राजकपूर ने पृथ्वी थियेटर्स (पृथ्वीराज की नाट्य संस्था) की परंपरा के निर्वाह के बदले अपनी स्वतंत्र संस्था का निर्माण किया और अब वर्तमान पीढ़ी भी यही कर रही है। ज्ञातव्य है कि शशि कपूर ने भी अपनी निर्माण संस्था खोली थी और शम्मी कपूर ने भी मेहरा की भागीदारी में दो फिल्में बनाई थीं।
यह बात नजरअंदाज की जा रही है कि पृथ्वी थियेटर्स के मैनिफेस्टो में फिल्म निर्माण का कोई उद्देश्य नहीं था और सत्रह वर्षों में उस संस्था ने अनेक नगरों में जाकर 2700 नाट्य प्रस्तुतियां की तथा संस्था की रीढ़ की हड्डी पृथ्वीराज थे जो लगभग ग्यारह हजार घंटे रंगमंच पर विभिन्न पात्रों की अदायगी करते रहे तथा पृथ्वी का मूल मंत्र था 'कला देश के लिए'। ज्ञातव्य है कि आर्थिक कठिनाइयों और पृथ्वीराज कपूर के गले में खराबी के कारण वह संस्था बंद हो गई परंतु राजकपूर ने संस्था से जुड़े लोगों को जीवनभर उनका वेतन भिजवाया था।
आज सितारों जडि़त फिल्मों के निर्माण में इतना अधिक मुनाफा है कि एक पारिवारिक पुरातन संस्था में निर्माण का अर्थ मुनाफे का बंटवारा होता है जिसके लिए कोई तैयार नहीं हैं। आज कोई दो बड़े सितारे एक फिल्म में काम नहीं करना चाहते क्योंकि मुनाफे के बंटवारे में उनकी रुचि नहीं है। आज 'अमर अकबर एंथोनी' या 'धर्मवीर' बनाई नहीं जा सकती। सलमान, शाहरुख को लेकर कोई 'करण अर्जुन' नहीं बनाई जा सकती और ना ही ऋतिक तथा रनबीर कपूर के साथ दो नायक वाली फिल्म रची जा सकती है। इस सांस्कृतिक तौर पर खोखले दौर का मूल मंत्र लोभ है तथा इसके बही खाते में शुभ लाभ और लाभ शुभ नहीं दर्ज किया जा सकता जो गुजरे दौर में इस बात का संकेत करता था कि अवाम की भलाई का विचार ही लाभ को शुभ करता है। यह सारा सोच फिल्म जगत तक सीमित नहीं है।
अन्य औद्योगिक घरानों में भी बंटवारे हुए हैं तथा राजनीति में भी यही हो रहा है। 'आप' के भीतर अभी से द्वंद्व और विभाजन प्रारंभ हो गया है जो उन शक्तियों द्वारा अपरोक्ष रूप से प्रायोजित भी हो सकता है जिनके लोभ को 'आप' से भय है। इसीलिए विगत अनेक वर्षों से इस कॉलम में लिखा जा रहा है कि जीवन मूल्यों की स्थापना और सांस्कृतिक शून्य से मुक्ति ही एक मात्र रास्ता है। किसी सख्त कानून और घुड़सवार तानाशाह के बस में यह आदर्श संभव ही नहीं है।
Source: Karishma - Kareena Production House - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar - 17th January 2014
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