99 कभी 100 फीसदी को हटा नहीं सकता
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर इंजीनियरिंग कॉलेज की एक स्टूडेंट हमेशा 100 फीसदी खुश रहती है। वह सोचती है कि कुछ अच्छा हो तो ठीक, नहीं हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन उसे अपना 100 फीसदी देना है। उसने 1990 के दशक की शुरुआत में विप्रो कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया। उसे नौकरी मिल गई। उसे कंपनी के संभावित ग्राहकों को आगामी उत्पादों के बारे में बताने का काम सौंपा गया। वह अपने काम को पूरी प्रतिबद्धता से कर रही थी।
Source: 99 Cannot Erase 100% - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th December 2013
अमेरिकी कंपनी टैक्सस इंस्ट्रूमेंट के लिए काम के दौरान उसकी मुलाकात उस व्यक्ति से हुई जो आगे चलकर उसका हमसफर बना। उसे अपने काम के सिलसिले में अक्सर स्कूटर से आना-जाना पड़ता था। इसी वजह से वह सेकंड हैंड कार खरीदना चाहती थी। लेकिन उसके पति ने उसे 91,000 रुपए में कम्प्यूटर खरीद दिया। इसके बाद उसने प्रोडक्ट सेल्स से संबंधित कामकाज कम्प्यूटर पर करना शुरू किया। कंपनी की पूरी सेल्स टीम के काम में इससे बड़ा बदलाव आया। वह टीम का केंद्र बिंदु बन गई। उसके पति लगातार उसके कौशल विकास में मदद कर रहे थे। इसी बीच उसे कंपनी ने पोर्टलैंड भेज दिया। अब वह प्रोडक्ट सेल्स एक्जीक्यूटिव बन चुकी थी। कुछ साल बाद वह वहां भी लोकप्रिय एक्जीक्यूटिव बन गई। लेकिन इतने सालों में उसे कभी अमेरिका में विप्रो के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) विवेक पॉल से मिलने का मौका नहीं मिला। वह नहीं जानती थी कि विवेक बैठते कहां हैं। कैसे दिखते हैं। उन्हें कैसे कर्मचारी पसंद हैं। अपने कर्मचारियों से वे क्या अपेक्षा करते हैं।
तभी उन्हें पता चला कि कंपनी के मार्केटिंग हेड ने नौकरी छोड़ दी है और इस पद पर नए मुखिया की तलाश हो रही है। उसने इसे अपने लिए एक अच्छा मौका माना। सीईओ विवेक पॉल के ऑफिस का एड्रेस पता किया। ऑफिस कैलीफोर्निया में था। वह वहीं पहुंच गई और विवेक पॉल के पहुंचने का इंतजार करने लगी। जैसे ही विवेक पहुंचे उसने अपना परिचय दिया। साथ में यह इच्छा भी जता दी कि वह मार्केटिंग हेड के तौर पर काम करना चाहती है। दूसरे सीईओ की तरह विवेक की भी प्रतिक्रिया यही थी, 'मैं इस वक्त व्यस्त हूं। बाद में बात करते हैं।' वह एक घंटे तक उनके केबिन के बाहर इंतजार करने लगी।
विवेक किसी दूसरे काम से केबिन से बाहर निकले। उन्होंने उससे कहा, 'मैं आपके बारे में कुछ नहीं जानता। फिर आपकी बात सुनने में समय क्यूं बर्बाद करूं।' लेकिन उसने विवेक से कुछ मिनट ही मांगे। विवेक ने कॉरीडोर में खड़े होकर उसकी बात सुनी और कहने लगे, 'आप पुख्ता योजना बनाकर लाइए कि कैसे कंपनी की बिक्री को कई सौ फीसदी तक बढ़ा सकती हैं।' उसने विवेक की चुनौती को स्वीकार कर लिया महज 48 घंटे के भीतर वह पूरी योजना के साथ फिर विवेक के दफ्तर पहुंच गई। विवेक से समय लिया और योजना उनके सामने पेश कर दी।
विवेक उसकी योजना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तीन हफ्ते के भीतर कंपनी का मार्केटिंग हैड बना दिया। इस पद पर काम करते हुए संगीता सिंह ने चार साल में कंपनी को वादे से भी अधिक लाभ पहुंचाया। उन्हें जल्दी ही एंटरप्राइज एप्लीकेशन सर्विसेज का प्रमुख बना दिया गया। यह विप्रो की सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी सर्विस है। इसके बाद साल 2011 में संगीता को कंपनी के हेल्थकेयर वर्टिकल को लीड करने की जिम्मेदारी दे दी गई। राष्ट्रपति बराक ओबामा की हेल्थकेयर योजना के तहत कंपनी अपने इस सेक्शन पर सबसे ज्यादा फोकस कर रही है। टाइम मैगजीन ने संगीता को 'आउटसोर्सिंग वंडरकिड' की उपाधि दी है। उसे बेस्ट एशियन वूमन एक्जीक्यूटिव के लिए स्टीव अवॉर्ड भी मिल चुका है।
फंडा यह है कि...
किस्मत को कोसते हुए मत बैठे रहिए। 99 फीसदी कभी भी सौ की जगह नहीं ले सकता। यानी अगर आपको आगे बढऩा है, 100 फीसदी ही देना होगा।
Source: 99 Cannot Erase 100% - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th December 2013
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