खुशहाल जिंदगी बर्बाद कर देती है बुरी लत
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
कुट्टी कृष्णन एक दिहाड़ी मजदूर है। ईमानदार। शराब, बीड़ी-सिगरेट या तंबाकू की कोई बुरी लत नहीं। इस वजह से साथी भी उसकी काफी इज्जत करते हैं। लेकिन एक रोज उसकी पत्नी को कृष्णन का दूसरा पहलू भी पता चला। दरअसल, बीते कई दिनों से कृष्णन ने घर खर्च के लिए एक भी रुपया नहीं दिया। उसके पूरे परिवार को 10 दिन से भूखे पेट सोना पड़ रहा था। उसकी पत्नी को समस्या की वजह समझ नहीं आ रही थी। एक दिन अचानक उसकी मुलाकात कृष्णन के साथ काम करने वाले कुछ लोगों से हुई। उन्होंने उसे बताया कि कृष्णन को लॉटरी खेलने की लत लग गई है। लॉटरी के टिकट खरीदने में ही वह अपनी रोज की कमाई खर्च कर देता है। कृष्णन की पत्नी पति के सामने घर की जरूरतों के लिए पैसे न होने का मामला उठाने लगी। इस पर कृष्णन कई बार आपा खो देता। अक्सर उसके साथ मारपीट करता। इसके साथ ही पत्नी से एक बात और कहता कि अगर वह शराबी होता तो क्या करती।
Source: Addiction Ruins Vibrant Lives - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 30th December 2013
कुट्टी लंबे समय से एक बात को नजरअंदाज करता आ रहा है। वह ये कि लॉटरी एक तरह का जुआ ही है। इसकी लत काफी तेजी से लगती है। कम आमदनी वाले लोग जो एक बार इस लत के शिकार हो जाते हैं, इसे खरीदना नहीं छोड़ते। इसलिए उनके परिवार में अक्सर अशांति और कलह बनी रहती है। कुट्टी की पत्नी उसे यह बात अक्सर समझाती भी। कहती कि उसकी लत शराब के जैसी ही तो है। लेकिन वह कहां ये सब बातें समझता। केरल में कुट्टी जैसे लाखों लोग हैं। केरल में हर रोज 45 से 60 लाख सरकारी लॉटरी टिकट जारी होते हैं। इसके लिए सरकार ने दो प्रिंटिंग मशीनें भी लगाई हैं। राज्य में कम आमदनी वाले लोगों के बीच लॉटरी की लत इतनी गहरी है कि राज्य में छपने वाले टिकट भी कम पड़ जाते हैं। यहां दो तरीके के लॉटरी टिकट जारी होते हैं। पहले 20 रुपए की कीमत वाले टिकट। इनका ड्रॉ सप्ताह में चार दिन रोज निकलता है। दूसरे टिकट 40 से 50 रुपए कीमत के होते हैं। इनका ड्रॉ सप्ताह के आखिरी तीन दिनों में रोज निकाला जाता है।
राज्य के 14 जिलों में मौजूद लॉटरी ऑफिसों में एजेंटों के बीच सबसे ज्यादा मांग 20 रु. वाले टिकटों की होती है। बीते तीन महीनों से सरकार ने एक भी नया लॉटरी एजेंट नियुक्त नहीं किया है। कुछ साल पहले10 लाख लॉटरियों से शुरुआत करने वाला यहां का लॉटरी विभाग अब 500 लोगों के स्टाफ के साथ काम कर रहा है। लॉटरी के टिकट केरल के स्टेट सेंटर फॉर एडवांस प्रिंटिंग एंड ट्रेनिंग यूनिट और केरल बुक्स एंड पब्लिकेशन सोसायटी में छपते हैं। सरकार ने इन दोनों यूनिटों को नई प्रिंटिंग मशीनों के लिए 10.50 करोड़ रुपए एडवांस देने का निर्णय भी लिया है। लॉटरियों से होने वाली कमाई राज्य सरकार की आय का अहम हिस्सा है। लॉटरी डिपार्टमेंट का अनुमान है कि इस साल सरकार को टिकटों की बिक्री से करीब 37 सौ करोड़ आमदनी होगी। पहले उसका आकलन 36 सौ करोड़ का था।
साल 2012-2013 में राज्य सरकार को लॉटरी टिकटों की बिक्री से 2,780 करोड़ रुपए मिले थे। इन आंकड़ों से साफ है कि राज्य में कितने कुट्टी कृष्णन अपनी पारिवारिक जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। समाजशास्त्री लॉटरी बूम को लेकर काफी चिंतित हैं। लॉटरी टिकटों की बढ़ती बिक्री के पक्ष में कथित तौर पर कहा जाता है कि इससे फंड की कमी से जूझ रही समाज कल्याण की योजनाओं को चलाने में मदद मिलेगी। हालांकि यह तर्क सवालों के घेरे में है। क्योंकि लॉटरी की लत के कारण ही कई लोग आर्थिक तौर पर कमजोर ही हो रहे हैं। फिर समाज कल्याण कैसा?
फंडा यह है कि ……
किसी भी तरह की लत हमारी आय के स्रोत को खत्म ही करती है। यह परिवार और व्यक्ति को भी ऐसा नुकसान पहुंचाती है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। ऐसी आदतों को तुरंत छोड़ देना चाहिए।
Source: Addiction Ruins Vibrant Lives - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 30th December 2013
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