Wednesday, December 11, 2013

Your Name Can Become A Brand Even After Failure - Management Funda - N Raghuraman - 11th December 2013

असफलता के बावजूद ब्रांड बन सकता है आपका नाम 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


नई दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में अपने साथ के और कई स्टूडेंट्स की तरह विपुल वेद प्रकाश भी ग्रेजुएशन कर रहा था। यह नई सहस्राब्दी शुरू होने से एक साल पहले यानी 1999 की बात है। उसने देखा कि उसके कई सीनियर अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं। वहां कोड राइटर के तौर पर काम करने वालों की काफी मांग थी। हजारों-लाखों अमेरिकी कम्प्यूटरों और उनकी एप्लीकेशन्स को मैनेज करने के लिए वहां लोगों की जरूरत थी। लिहाजा वेद प्रकाश ने भी कोड राइटिंग कोर्स ज्वाइन कर लिया, लेकिन एक दिक्कत थी। ग्रेजुएशन कोर्स के लिए कॉलेज में मिनिमम अटेंडेंस जरूरी थी। इसलिए वेद प्रकाश कोड राइटिंग पूरा ध्यान नहीं लगा पा रहा था। ऐसे में उसने अचानक एक दिन कॉलेज जाना बंद कर दिया। उस पर कॉलेज ड्रॉप आउट का ठप्पा लग गया। इस दौरान उसकी काफी आलोचना हुई, लेकिन उसने परवाह नहीं की। ठीक एक साल बाद यानी 2000 में उसे कैलिफोर्निया की म्यूजिक शेयरिंग साइट नैप्सटर से ऑफर मिल गया। यहां उसने पूरे तीन साल काम किया। 

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नैप्सटर में वेद प्रकाश ने सीधे वेबसाइट के चीफ जॉर्डन रिटर के साथ काम किया। इस दौरान उनके साथ मिलकर एक नई कंपनी स्थापित की। सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर बनाने वाली इस कंपनी का नाम था क्लाउडमेकर। तीन साल और इस नए वेंचर के साथ काम किया। लेकिन वेद अपने काम से कुछ खास संतुष्ट नहीं था। इसलिए उसने कंपनी छोड़ दी। साल 2007 में उसने टॉप्सी लैब इंक नाम की कंपनी ज्वाइन की। इसमें एक भारतीय और दो गैरभारतीय साझीदार थे। उस वक्त माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही थी। यह कम शब्दों में भावनाएं/विचारों को तेजी से व्यक्त करने का प्रभावी प्लेटफॉर्म साबित हो रही थी। वेदप्रकाश सहित टॉप्सी लैब के साझीदारों को उसी समय यह समझ आ गया कि ट्विटर के साथ कारोबार उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। उन्हें इससे अच्छी खासी कमाई हो सकती है। और टॉप्सी लैब ट्विटर से जुड़ गई। फायरहॉज के नाम से। साल 2006 के बाद से आज तक किए हर ट्वीट इस पर उपलब्ध हैं। टॉप्सी लैब ट्विटर की सर्टिफाइड पार्टनर है। सभी तरह के ट्वीट के रिकॉर्ड को मैंटेन रखने और उनका विश्लेषण करने का काम करती है। ट्विटर के यूजर फायरहॉज पर एक्सेस लेकर पुराने ट्वीट देख सकते हैं। ट्विटर पर रोज करीब 50 करोड़ ट्वीट किए जाते हैं। यानी आप अंदाजा लगा सकते हैं टॉप्सी लैब के पास कितनी बड़ी तादाद में ट्वीट्स का संग्रह होगा। टॉप्सी ने यह सब यूं नहीं किया था। वह जानती थी कि इस भारी-भरकम कवायद से उतनी ही बड़ी कमाई होगी। हुई भी। इस सोमवार को ही एपल इंक ने टॉप्सी को 20 करोड़ डॉलर (करीब 1,222 करोड़ रुपए) में खरीदा है। सिर्फ इसके पास मौजूदा डाटा के खजाने के कारण एपल जैसी कंपनी इतनी भारी-भरकम कीमत देने को तैयार हुई। एपल ने इससे पहले भी कई कंपनियां खरीदीं। ताकि उसके प्रोडक्ट और सर्विस को बेहतर बनाया जा सके। उसमें नए टूल्स जोड़े जा सकें। मिसाल के तौर पर 2010 में उसने सीरी इंक को खरीदा। अब यह एपल के प्रोडक्ट में एक फीचर के तौर पर नजर आ रही है। टॉप्सी के साथ भी यही हो सकता है। और एपल हमेशा कंपनी से ज्यादा उसके टैलेंट पर फोकस करती है। टॉप्सी को अपने साथ जोड़कर भी उसने यही किया है। इसके पीछे लगे दिमाग अब एपल के लिए काम करेंगे। एपल के मैनेजमेंट में जुड़े लोगों से जब टॉप्सी को खरीदने के संबंध में मीडिया ने प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया। शायद उनके लिए यह कोई बड़ी चीज न हो, लेकिन टॉप्सी के वेद प्रकाश और उनकी टीम के लिए तो यह जश्न का मौका है। जाहिर तौर पर आज कोई भी वेद प्रकाश को कॉलेज ड्रॉप आउट कहने की हिम्मत नहीं कर सकता। क्योंकि उनकी कामयाबी ने इस धब्बे को धो डाला है। आज उनका नाम अपने आप में एक ब्रांड बन चुका है।

फंडा यह है कि...

जवानी के जोश में कभी-कभी अपने नाम का बैंड बज जाता है। असफलताएं अपने खाते में जमा हो जाती हैं। फिर भी खुद के नाम को ब्रांड बनाने के मौके कभी खत्म नहीं होते। बस सिर्फ फोकस चाहिए।



































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