धूम के सामने महाभारत और मोक्ष
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
बॉक्स ऑफिस पर धूम की आंधी के कारण जयंतीलाल गढ़ा की 'महाभारत' को दर्शक नहीं मिले और अजीत भैरवकर निर्देशित 'मोक्ष' का हाल भी बेहतर नहीं है। हमारा सिनेमा इतना सितारा केन्द्रित है कि कथा की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। 'मोक्ष' की कथा का आधार महाराष्ट्र की पंढरपुर यात्रा है। अठारह दिन की इस धार्मिक यात्रा में 240 किलोमीटर चलना होता है। भगवान विठोबा के अनगिनत भक्त इस यात्रा में भाग लेते है। दरअसल सारी यात्राएं दो स्तर पर चलती हैं- बाहरी यात्रा और भीतरी तलाश जैसे धरती भी अपने ध्रुव पर घूमने के साथ ही आकाश गंगा में अपने पथ पर भी चलती है और दोहरे स्तर पर की गई इस यात्रा के कारण ही दिन-रात होते हैं और मौसम चक्र भी घूमता है। मनुष्य के विकास में यात्रा का बहुत महत्व है। मानसरोवर यात्रा सबसे कठिन मानी जाती है
Source: Mahabharat And Moksh Opposite Dhoom - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 30th December 2013
पंढरपुर की यात्रा पर पहले भी फिल्में बनी हैं। दशकों पूर्व एक कथा पढऩे का अवसर मिला था जिसमें एक चोर युवा विधवा के गहनों को चुराने के उद्देश्य से यात्रा में शामिल होता है और कुछ अवसर एक अनजान बालक के आकस्मिक रूप से आ जाने के कारण चोर सफल नहीं हो पाता। युवा विधवा उसके इरादे को नहीं जानती परंतु उससे बात करती है। एक अनअभिव्यक्त प्रेम-कथा समानांतर चल रही है। अंत में विठोबा के दर्शन के समय उस अनजान बच्चे की छवि चोर को मंदिर में दिखाई देती है और वह समझ जाता है कि यह बालक भगवान विठोबा ही थे जो उसे बुरे कार्य से रोकना चाहते थे। अब उसे जीवन में एक दिशा मिल गई है। फिल्म रूपांतरण में प्रेम-कथा के स्वर ज्यादा मुखर हो सकते हैं। पांचवे दशक में राजकपूर अभिनीत 'बेवफा' में नायक चोरी के इरादे से घर आया है और नायिका से प्रेम हो जाता है परन्तु गैंग के दबाव के कारण उसे चोरी करनी पड़ती है।
पांचवे दशक में ही इस कथा में थोड़े परिवर्तन के साथ देवआनंद-सुचित्रा सेन अभिनीत 'बम्बई का बाबू' का प्रदर्शन हुआ जिसमें देवआनंद को अपना प्रेम मारना पड़ता है क्योंकि चोरी के उद्देश्य से बनाये गए नकली रिश्ते में सुचित्रा उसकी बहन है और रिश्ता नकली ही सही वह उसके निर्वाह के लिए सुचित्रा की दहेज की रकम अपने गैंग से वापस लाता है। उसे इसका प्रमाण भी मिल जाता है कि परिवार के जिस युवा का रूप धरकर वह आया है, उसका कत्ल उसी के हाथ हुआ था। अत: यह सद्कार्य उसके पश्चाताप का हिस्सा है। इसमें सचिन देव बर्मन ने अत्यंत मधुर संगीत दिया था और क्लाइमैक्स गीत 'चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा न बह जाये रोते रोते' सर्वकालिक महान बिदाई गीत है। अजीब बात यह है कि 'बेवफा' और 'बम्बई का बाबू' दोनों ही असफल फिल्म रहीं क्योंकि भाई-बहन के पावन रिश्ते में प्रेम की हल्की सी परछाई भी सहन नहीं की जाती। मुगल बादशाह हुमायूं राजपूत राजकुमारी कर्मवती द्वारा भेजी गई राखी की लाज रखने के लिए स्वयं का तख्त खो देते हैं। इस ऐतिहासिक घटना से प्रेरित हरिकृष्ण प्रेमी के नाटक रक्षा-बंधन के आधार पर राजकपूर अभिनीत 'चितौड़ विजय' नामक फिल्म सफल रही थी।
आज सांप्रदायिक घृणा को फैलाने वाले लोग इस मुगल भाई और राजपूत बहन का इतिहास भुला चुके हैं। बहरहाल धार्मिक यात्राओं पर सभी देशों में कथाएं और कविताएं है। अंग्रेजी पहले कवि चौसर की 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' में मानवीय अवचेतन का गहरा अध्ययन है। 'यूलिसिस' भी ज्ञान के लिए की गई यात्रा का विवरण है।
इम्तियाज अली की सारी फिल्मों में पात्र प्राय: यात्रा पर ही रहते हैं और उनकी ताजा फिल्म का तो नाम ही 'हाइवे' है। सत्यजीत राव की 'कंचन गंगा' को यात्रा फिल्म तो नहीं कह सकते परन्तु यात्रा श्रेणी फिल्मों से हटा भी नहीं सकते। इसी तरह मोक्ष प्राप्ति हेतु भी यात्रा की जाती है। सभी धर्मों में यात्राओं एवं मोक्ष पर प्रकाश डाला गया है। अगर मोक्ष जीवन मरण के चक्र से मुक्त होकर परमात्मा में अपनी निजि स्मृति को तजकर विलीन होना है तो निजित्व के नष्ट होने के बाद कुछ बचता ही नहीं। दरअसल आम जीवन के कष्टों के बीच रहकर, अपने जीवन मूल्यों की रक्षा करने से बड़ी कोई मोक्ष अवधारणा हो नहीं सकती।
जीवन के निरंतर चल रहे युद्ध में सतत सघर्षशील रहने से बड़ा कुछ भी नहीं है। निर्भय व्यवस्थाओं द्वारा रचे गए कष्टों के अतिरिक्त मनुष्य के स्वयं निर्मित कष्ट भी कम नहीं हैं। केजरीवाल की राजनैतिक यात्रा में सबसे बड़ी रुकावट आम आदमी ही होने वाला है क्योंकि अधिकांश आम लोग ही अनैतिक कार्य करते हैं- असली लड़ाई आम आदमी की अपने साथ ही है।
पांचवे दशक में ही इस कथा में थोड़े परिवर्तन के साथ देवआनंद-सुचित्रा सेन अभिनीत 'बम्बई का बाबू' का प्रदर्शन हुआ जिसमें देवआनंद को अपना प्रेम मारना पड़ता है क्योंकि चोरी के उद्देश्य से बनाये गए नकली रिश्ते में सुचित्रा उसकी बहन है और रिश्ता नकली ही सही वह उसके निर्वाह के लिए सुचित्रा की दहेज की रकम अपने गैंग से वापस लाता है। उसे इसका प्रमाण भी मिल जाता है कि परिवार के जिस युवा का रूप धरकर वह आया है, उसका कत्ल उसी के हाथ हुआ था। अत: यह सद्कार्य उसके पश्चाताप का हिस्सा है। इसमें सचिन देव बर्मन ने अत्यंत मधुर संगीत दिया था और क्लाइमैक्स गीत 'चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा न बह जाये रोते रोते' सर्वकालिक महान बिदाई गीत है। अजीब बात यह है कि 'बेवफा' और 'बम्बई का बाबू' दोनों ही असफल फिल्म रहीं क्योंकि भाई-बहन के पावन रिश्ते में प्रेम की हल्की सी परछाई भी सहन नहीं की जाती। मुगल बादशाह हुमायूं राजपूत राजकुमारी कर्मवती द्वारा भेजी गई राखी की लाज रखने के लिए स्वयं का तख्त खो देते हैं। इस ऐतिहासिक घटना से प्रेरित हरिकृष्ण प्रेमी के नाटक रक्षा-बंधन के आधार पर राजकपूर अभिनीत 'चितौड़ विजय' नामक फिल्म सफल रही थी।
आज सांप्रदायिक घृणा को फैलाने वाले लोग इस मुगल भाई और राजपूत बहन का इतिहास भुला चुके हैं। बहरहाल धार्मिक यात्राओं पर सभी देशों में कथाएं और कविताएं है। अंग्रेजी पहले कवि चौसर की 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' में मानवीय अवचेतन का गहरा अध्ययन है। 'यूलिसिस' भी ज्ञान के लिए की गई यात्रा का विवरण है।
इम्तियाज अली की सारी फिल्मों में पात्र प्राय: यात्रा पर ही रहते हैं और उनकी ताजा फिल्म का तो नाम ही 'हाइवे' है। सत्यजीत राव की 'कंचन गंगा' को यात्रा फिल्म तो नहीं कह सकते परन्तु यात्रा श्रेणी फिल्मों से हटा भी नहीं सकते। इसी तरह मोक्ष प्राप्ति हेतु भी यात्रा की जाती है। सभी धर्मों में यात्राओं एवं मोक्ष पर प्रकाश डाला गया है। अगर मोक्ष जीवन मरण के चक्र से मुक्त होकर परमात्मा में अपनी निजि स्मृति को तजकर विलीन होना है तो निजित्व के नष्ट होने के बाद कुछ बचता ही नहीं। दरअसल आम जीवन के कष्टों के बीच रहकर, अपने जीवन मूल्यों की रक्षा करने से बड़ी कोई मोक्ष अवधारणा हो नहीं सकती।
जीवन के निरंतर चल रहे युद्ध में सतत सघर्षशील रहने से बड़ा कुछ भी नहीं है। निर्भय व्यवस्थाओं द्वारा रचे गए कष्टों के अतिरिक्त मनुष्य के स्वयं निर्मित कष्ट भी कम नहीं हैं। केजरीवाल की राजनैतिक यात्रा में सबसे बड़ी रुकावट आम आदमी ही होने वाला है क्योंकि अधिकांश आम लोग ही अनैतिक कार्य करते हैं- असली लड़ाई आम आदमी की अपने साथ ही है।
Source: Mahabharat And Moksh Opposite Dhoom - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 30th December 2013
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