ऐसा कुछ नहीं है, जिसे बदला न जा सके
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
पहली कहानी: तमिलनाडु में चेन्नई से 150 किमी की दूरी पर एक गांव थंदलम। पिछले नौ साल में यह गांव कई लोगों के लिए मिसाल बन चुका है। इसके लिए बधाई की पात्र हैं राधा पार्थसारथी। वे 2004 से ही इस गांव में बदलाव के लिए कोशिश कर रही हैं। सबसे पहले उन्होंने गांव के हर घर में टॉयलेट बनवाने का अभियान चलाया। पूरे गांव में 260 टॉयलेट बन, जिस पर 15.60 लाख रु. खर्च हुए। स्वच्छ और साफ-सुथरे गांव के तौर पर थंदलम को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने निर्मल ग्राम पुरस्कार भी दिया था। फिर उन्होंने गांव के टूटे-फूटे मंदिरों को बनवाया। थंदलम और उसके आसपास कभी कम बारिश नहीं हुई। लिहाजा राधा ने गांव के लोगों को रेनवाटर हार्वेस्टिंग (बारिश के पानी का संरक्षण) की तकनीक भी सिखा डाली। राधा ने विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर संपर्क किया। गांव में स्ट्रीट लाइट, पेयजल आपूर्ति के लिए पंप और दो सीमेंटेड सड़कों की सुविधा दिलाई।
Source: There Is Nothing Which Can Not Be Changed - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th December 2013
उन्होंने अगला लक्ष्य तय किया गांव में स्वास्थ्य सुविधा दिलाने का, लेकिन यह सिर्फ गांव वालों के लिए नहीं। जानवरों के लिए भी। उनका मानना है कि गांव वाले अपनी खेती-बाड़ी के लिए पूरी तरह जानवरों पर निर्भर होते हैं, इसलिए उनके जानवरों के स्वास्थ्य की देखभाल भी जरूरी है। आज इस गांव में इंसानों और जानवरों दोनों के लिए स्वास्थ्य केंद्र मौजूद हैं। गांव वाले इससे काफी खुश हैं। इसके बाद भी राधा के प्रयास रुके नहीं। उन्होंने दयनीय हालत में पड़े गांव के स्कूल को दोबारा बनवाया। वहां मध्याह्न भोजन की व्यवस्था दुरुस्त की। कंप्यूटर सेंटर स्थापित किया। आज गांव के इस स्कूल में 330 बच्चे पढ़ रहे हैं। स्कूल के शिक्षकों को शाम के समय या सप्ताह के अंत में अन्य पढ़े-लिखे लोगों से प्रशिक्षण का इंतजाम किया। इससे फर्क नजर आया। यह स्कूल अब पूरे गांव में सबसे एक्टिव जगह बन चुका है। गांव वालों को राधा ने जैविक खेती के तौर-तरीके भी सिखाए। जैविक खाद बनाना और उसका उपयोग। जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना। जैविक खेती से भी गांव वालों को फायदा हुआ। राधा ने इसके बाद गांव की महिलाओं को इकट्ठा किया। उनके समूह बनाए। एक समूह को बिल्कुल परंपरागत तरीकों से मसाला पाउडर बनाना सिखाया। पाउडर बनाते समय महिलाओं को हाथ में ग्लव्ज और मुंह पर मास्क लगाने की अहमियत समझाई। ताकि साफ-सुथरे तरीके से मसाले बनाए और पैक किए जा सकें। दूसरे समूह को उन्होंने आसपास के साप्ताहिक हाट में जाकर गांव के बने मसाले वगैरह बेचने का प्रशिक्षण दिया। सेल्स टीम ने भी पूरी योजना के साथ काम किया। ताकि नतीजे बेहतर हों। इस टीम ने बाकायदा चार्ट बनाया। उसमें उल्लेख किया कि आसपास के गांवों में क्या बेचा जा रहा है। किस चीज की मांग है। उसी के हिसाब से पहली टीम ने उत्पादन पर फोकस किया। यह प्रक्रिया पूरे हफ्ते चलती है। राधा अब गांव वालों को जैविक तरीके से उगाई सब्जियों से अचार बनाना सिखा रही हैं । गांव की महिलाएं उत्पादों के स्वतंत्र रूप से ऑर्डर लेना और उसके हिसाब से आपूर्ति के गुर सीख रही हैं। औद्योगिक संगठन फिक्की की महिला इकाई ने दिल्ली में पिछले हफ्ते 30 महिलाओं को सम्मानित किया। इनमें राधा पार्थसारथी भी एक थीं। उन्हें मानवता और सामाजिक कार्यों के लिए पुरस्कार दिया गया।
दूसरी कहानी: महज 110 दिन के भीतर 1,000 वर्गमीटर जमीन में 14 टन खीरा का उत्पादन। वह भी बिल्कुल जैविक तरीके से। तमिलनाडु के ही मदुरै में थुयानेरी गांव के अरुल प्रकाशम ने यह कारनामा किया है। उन्हें इस काम में उद्यानिकी विभाग ने भी मदद दी है। इस उत्पादन में कुल लागत आई 6.5 लाख रुपए। इसमें से आधी रकम सरकार से सब्सिडी के तौर पर मिली। अरुल ने यह उपलब्धि प्रभावी जल प्रबंधन के जरिए हासिल किया। फसल को कीट-पतंगों से बचाने का इंतजाम भी सही ढंग से किया। सूरज की सीधी रोशनी न पड़े इसलिए अल्ट्रावॉयलेट ट्रीटमेंट वाली पॉलीशीट से फसल को ढंककर रखा। और नतीजा सामने है।
फंडा यह है कि...
ये दो कहानियां बताती हैं अगर आप में बदलाव लाने का इरादा है तो आप ल सकते हैं। चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो या समाज में।
Source: There Is Nothing Which Can Not Be Changed - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th December 2013
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