Sunday, December 8, 2013

Being Constant is Better Then Slow Speed - Management Funda - N Raghuraman - 8th December 2013

धीमी रफ्तार से बेहतर है निरंतरता के साथ तेजी

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


अति आत्मविश्वास, लापरवाही और पेड़ के नीचे सो जाने के कारण खरगोश रेस में कछुए से हार गया था। दोनों के बीच दोबारा रेस हुई। इस बार वह दौड़ा। लगातार दौड़ा। और रेस जीत गया। मैनेजर्स की मॉडर्न थ्योरी इसी सबक पर काम करती है। यह थ्योरी कहती है कि किसी भी संस्थान में वे कर्मचारी बेहतर काम करते हैं जो अपनी गति 'तेज और निरंतर तेज' बनाए रखते हैं। 'धीमी और एक-सी रफ्तार' बनाए रखने वाले बेहतर नहीं कर पाते। मार्केटिंग और मैनेजमेंट गुरु यह थ्योरी लिखते, इससे पहले ही सुुनीता शर्मा इसे अपना चुकी थीं। सुनीता शर्मा एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस की पहली महिला सीईओ हैं। उन्होंने 1981 में अपना कॅरिअर शुरू किया। तब वे एलआईसी में सीधी भर्ती के जरिए चुनी गई थीं। उन्होंने हमेशा चुनौतियां और नई जिम्मेदारियां स्वीकार कीं। उनके सहयोगियों का कहना है कि शुरू से सुनीता को हर समस्या को उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना पसंद था। लेकिन इसमें कुछ फर्क था। 

Source:  Being Constant is Better Then Slow Speed - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th December 2013

वे ऐसे काम दूसरों से कहीं ज्यादा तेजी से कर लेती थीं। हर किसी से परस्पर संवाद ने उन्हें लोकप्रिय लीडर और मास्टर बिज़नेस डेवलपर बना दिया। 5 नवंबर को जब वे एलआईसी हाउसिंग की एमडी और सीईओ चुनी गईं तो वे किसी वित्तीय संस्थान का नेतृत्व कर रहीं चुनिंदा महिलाओं की श्रेणी में शामिल हो गईं। ऐसी चुनिंदा महिलाओं की सूची में एसबीआई की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, इलाहाबाद बैंक की शुभलक्ष्मी पणसे, बैंक ऑफ इंडिया की विजयलक्ष्मी अय्यर, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की अर्चना भार्गव, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एक्सिस बैंक की शिखा शर्मा, एचएसबीसी इंडिया की नैना लाल किदवई, जेपी मॉर्गन इंडिया की कल्पना मोरपरिया और आरबीएस इंडिया की मीरा सान्याल मौजूद हैं।

सुनीता इस क्लब में कैसे शामिल हुईं? क्योंकि उनके जैसे ओहदे पर पहुंच चुके लोग तो डेस्क पर बैठकर काम करना पसंद करते हैं। लेकिन वे ऐसी नहीं हैं। वे दफ्तर से बाहर भी कदम रखती हैं। क्लाइंट्स से मिलती हैं। बिज़नेस लाती हैं। आप बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के आंकड़ों पर गौर करें। आप पाएंगे कि जब से सुनीता ने कमान संभाली, एलआईसी के पेंशन और गु्रप स्कीम विभाग का बिज़नेस 10,549 करोड़ रुपए से बढ़कर 34,525 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। एलआईसी को मिले नए बिज़नेस में इस विभाग की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। सुनीता ने निजी कारणों के चलते कई बार प्रमोशन नहीं लिया। इससे उनके साथी आगे बढ़ गए और एमडी तक बन गए। लेकिन इससे सुनीता का आत्मविश्वास और काम करने की रफ्तार कम नहीं हुई। उनका उत्साह वैसा ही है, जब वे एलआईसी में आई थीं। वे खुद को टीम प्लेयर ही मानती हैं। अब उनके पास एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस की बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि आरबीआई की मंजूरी के बाद यह बैंक में तब्दील हो जाएगा। आरबीआई को बिड़ला, बजाज, एल एंड टी और श्रीराम कैपिटल जैसे संस्थानों ने भी आवेदन दिए हैं। जनवरी 2014 में लाइसेंसों की घोषणा होगी। अगर सुनीता की कंपनी को लाइसेंस मिला तो उन्हें मूल संस्थान एलआईसी के नेटवर्क का फायदा मिलेगा। हर मुद्दे को उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने की उनकी काबिलियत से एलआईसी को मजबूती मिलेगी।

फंडा यह है कि...

गति की गुणवत्ता और उसकी निरंतरता सभी मुद्दों को उनके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाती है। यह काबिलियत आपको धीमे कर्मचारियों के मुकाबले ज्यादा बेहतर बना देगी।



































Source:  Being Constant is Better Then Slow Speed - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th December 2013

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